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दिनांक : १८ फरवरी २००८ विवेक – सूत्र मैं अभिषेक मिश्र, पिता श्री आचार्य अमरेन्द्र मिश्र (ज्योतिषी) तारानगर, मासीपीढ़ी, हजारीबाग – झारखण्ड कई दिनों से डायरी लिखने की सोच रहा था, लेकीन संमझ में नहीं आ रहा था की आखिर क्या लिखूं , सोचा आत्मकथा लिखूं लेकीन मैं डर गया की आत्मकथा में क्या लिखूं, मैं जो हूँ सो लिखूं या वो लिखूं जो लोग मेरे बारे में सोचते या जानते हैं । अब ये सोचने वाली बात है की मैं क्या हूँ, और लोग मेरे बारे में क्या और क्यों कुछ और जानते हैं । मैं क्या हूँ ये सिर्फ मैं जानता हूँ और लोग मेरे बारे क्या और क्यों कुछ और जानते है ये भी सिर्फ मैं जानता हूँ । मैं जो हूँ और लोग जो जानते हैं दो अलग पात्र हैं ये भी सिर्फ मैं जानता हूँ, बहुत दुःख होता है की मैं जो हूँ वो मैं नहीं हूँ । जब सुनता या सोचता हूँ की लोग मेरे बारे में क्या कहते या सोचते हैं तो चुल्लू भर पानी में डूब मरने को मन करता है, अकेले में बहुत रोता हूँ, आत्महत्या करने को मन करता है, एक बार कोशिश भी कर चूका हूँ, लेकीन परिणाम गलत हुआ मैं मरा तो नहीं पर लोग मुझे और गलत समझने लगे, मुझे गलत समझने वालों में मुख्य